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*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस :३१२/३५० (312/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*अष्टादशऽध्याय : मोक्षसंन्यासयोग*

*अध्याय १८ श्लोक ०८ (18:08)*
*दु:खमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात्यजेत्।*
*स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं लभेत्॥*

*शब्दार्थ—*
(यत्) जो कुछ (कर्म) भक्ति साधना का व शरीर निर्वाह के लिए कर्म है (दुःखम्, एव) दुःखरूप ही है (इति) ऐसा समझकर यदि कोई (कायक्लेशभयात्) शारीरिक क्लेशके भयसे अर्थात् कार्य करने को कष्ट मानकर कर्तव्य कर्मोंका (त्यजेत्) त्याग कर दे तो (सः) वह ऐसा (राजसम्) राजस (त्यागम्) त्याग (कृृत्वा) करके (त्यागफलम्) त्यागके फलको (एव) किसी प्रकार भी (न, लभेत्) नहीं पाता।

*अनुवाद—*
जो कुछ कर्म है वह सब दुःखरूप ही है- ऐसा समझकर यदि कोई शारीरिक क्लेश के भय से कर्तव्य-कर्मों का त्याग कर दे, तो वह ऐसा राजस त्याग करके त्याग के फल को किसी प्रकार भी नहीं पाता।

*अध्याय १८ श्लोक ०९ (18:09)*
*कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन।*
*सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्विको मत:।।*

*शब्दार्थ—*
(अर्जुन) हे अर्जुन! (यत्) जो (नियतम्) शास्त्रानुकूल (कर्म) कर्म (कार्यम्) करना कर्तव्य है (इति,एव) इसी भावसे (संगम्) आसक्ति (च) और (फलम्) फलका (त्यक्त्वा) त्याग करके (क्रियते) किया जाता है (सः,एव) वही (सात्त्विकः) सात्विक (त्यागः) त्याग (मतः) माना गया है।

*अनुवाद—*
हे अर्जुन! जो शास्त्रविहित कर्म करना कर्तव्य है- इसी भाव से आसक्ति और फल का त्याग करके किया जाता है- वही सात्त्विक त्याग माना गया है।

शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

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*अध्याय १८ श्लोक ०८ (18:08)*
*दु:खमित्येव यत्कर्म कायक्लेशभयात्यजेत्।*
*स कृत्वा राजसं त्यागं नैव त्यागफलं लभेत्॥*

*शब्दार्थ—*
(यत्) जो कुछ (कर्म) भक्ति साधना का व शरीर निर्वाह के लिए कर्म है (दुःखम्, एव) दुःखरूप ही है (इति) ऐसा समझकर यदि कोई (कायक्लेशभयात्) शारीरिक क्लेशके भयसे अर्थात् कार्य करने को कष्ट मानकर कर्तव्य कर्मोंका (त्यजेत्) त्याग कर दे तो (सः) वह ऐसा (राजसम्) राजस (त्यागम्) त्याग (कृृत्वा) करके (त्यागफलम्) त्यागके फलको (एव) किसी प्रकार भी (न, लभेत्) नहीं पाता।

*अनुवाद—*
जो कुछ कर्म है वह सब दुःखरूप ही है- ऐसा समझकर यदि कोई शारीरिक क्लेश के भय से कर्तव्य-कर्मों का त्याग कर दे, तो वह ऐसा राजस त्याग करके त्याग के फल को किसी प्रकार भी नहीं पाता।

*अध्याय १८ श्लोक ०९ (18:09)*
*कार्यमित्येव यत्कर्म नियतं क्रियतेऽर्जुन।*
*सङ्गं त्यक्त्वा फलं चैव स त्याग: सात्विको मत:।।*

*शब्दार्थ—*
(अर्जुन) हे अर्जुन! (यत्) जो (नियतम्) शास्त्रानुकूल (कर्म) कर्म (कार्यम्) करना कर्तव्य है (इति,एव) इसी भावसे (संगम्) आसक्ति (च) और (फलम्) फलका (त्यक्त्वा) त्याग करके (क्रियते) किया जाता है (सः,एव) वही (सात्त्विकः) सात्विक (त्यागः) त्याग (मतः) माना गया है।

*अनुवाद—*
हे अर्जुन! जो शास्त्रविहित कर्म करना कर्तव्य है- इसी भाव से आसक्ति और फल का त्याग करके किया जाता है- वही सात्त्विक त्याग माना गया है।

शेष क्रमश: कल

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Mr. Durov launched Telegram in late 2013 with his brother, Nikolai, just months before he was pushed out of VK, the Russian social-media platform he founded. Mr. Durov pitched his new app—funded with the proceeds from the VK sale—less as a business than as a way for people to send messages while avoiding government surveillance and censorship.

Telegram announces Anonymous Admins

The cloud-based messaging platform is also adding Anonymous Group Admins feature. As per Telegram, this feature is being introduced for safer protests. As per the Telegram blog post, users can “Toggle Remain Anonymous in Admin rights to enable Batman mode. The anonymized admin will be hidden in the list of group members, and their messages in the chat will be signed with the group name, similar to channel posts.”

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