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*जिनके मन में है श्रीराम, जिनके तन में हैं श्री राम।*
*जग में सबसे हैं वो बलवान,ऐसे प्यारे मेरे हनुमान।*
*जय श्रीराम… जय हनुमान*
*हनुमान जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं*
*#हनुमान_जन्मोत्सव*🚩🚩
*राम का हूँ भक्त मैं, रूद्र का अवतार हूँ,*
*अंजनी का लाल हूँ मैं, दुर्जनों का काल हूँ।*
*साधुजन के साथ हूँ मैं, निर्बलो की आस हूँ,*
*सद्गुणों का मान हूँ मैं, हां मैं हनुमान हूँ।।*

*श्री #हनुमान_जन्मोत्सव की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।...जय श्री राम🙏🚩*
*इतिहासबोध🦁🚩*

*चैत्र शुक्ल पूर्णिमा – पुण्यतिथि : हिंदू स्वराज्य के प्रणेता एवं संस्थापक वीर शिरोमणि श्री श्री छत्रपति शिवाजी राजे भोंसले*

छत्रपति शिवाजी महाराज का देहान्त चैत्र शुक्ल पूर्णिमा आंग्ल तिथिनुसार 3 अप्रैल, 1680 को 50 वर्ष की आयु में रायगढ़ दुर्ग में हनुमान जन्मोत्सव के दिन अस्वस्थता के कारण हुई थी। एक महान् शासक, एक महान् राजा, मराठा साम्राज्य के संस्थापक, हिन्दू स्वराज्य का स्वप्न देख उसे साकार करने वाले, एक शक्तिशाली, निष्ठावान, पराक्रमी व्यक्ति, जिन्होंने अपने अतुलनीय कौशल से इतिहास रचा, छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम सुनहरे अक्षरों में सदैव के लिए लोगों के हृदयों में अंकित है। हिन्दवी स्वराज के संस्थापक वीर शिरोमणि #छत्रपती_शिवाजी_महाराज की पुण्यतिथि पर कोटि कोटि नमन।🙏🏼🙏🏼
*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस :३१८/३५० (318/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*अष्टादशऽध्याय : मोक्षसंन्यासयोग*

*अध्याय १८ श्लोक २० (18:20)*
*सर्वभूतेषु येनैकं भावमव्ययमीक्षते।*
*अविभक्तं विभक्तेषु तज्ज्ञानं विद्धि सात्विकम्॥*

*शब्दार्थ—*
(येन) जिस ज्ञानसे मनुष्य (विभक्तेषु) पृथक्-पृथक् (सर्वभूतेषु) सब प्राणियोंमें (एकम्) एक (अव्ययम्) अविनाशी परमात्मा (भावम्) भावको (अविभक्तम्) विभागरहित समभावसे स्थित (ईक्षते) देखता है (तत्) उस (ज्ञानम्) ज्ञानको तो तू (सात्त्विकम्) सात्विक (विद्धि) जान।

*अनुवाद—*
जिस ज्ञान से मनुष्य पृथक-पृथक सब भूतों में एक अविनाशी परमात्मभाव को विभागरहित समभाव से स्थित देखता है, उस ज्ञान को तू सात्त्विक जान।

*अध्याय १८ श्लोक २१ (18:21)*
*पृथक्त्वेन तु यज्ज्ञानं नानाभावान्पृथग्विधान्।*
*वेत्ति सर्वेषु भूतेषु तज्ज्ञानं विद्धि राजसम्।।*

*शब्दार्थ—*
(तु) किंतु (यत्) जो (ज्ञानम्) ज्ञान (सर्वेषु) सम्पूर्ण (भूतेषु) प्राणियोंमें (पृथग्विधान्) भिन्न-भिन्न प्रकारके (नानाभावान्) नाना भावोंको (पृृथक्त्वेन) अलग-अलग (वेत्ति) जानता है (तत्) उस (ज्ञानम्) ज्ञानको तू (राजसम्) राजस (विद्धि) जान।

*अनुवाद—*
किन्तु जो ज्ञान अर्थात जिस ज्ञान के द्वारा मनुष्य सम्पूर्ण भूतों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नाना भावों को अलग-अलग जानता है, उस ज्ञान को तू राजस जान।

शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

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*आत्मबोध* 🕉️🚩

*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : नेत्रादि उत्तम इन्द्रियों को प्रदान करने वाले परमात्मा के प्रति कृतज्ञता का भाव रखने का उपदेश*

*ऋषीणांप्रस्तरोऽसि नमोऽस्तु दैवाय प्रस्तराय॥*

*(अथर्ववेद - काण्ड 16; सूक्त 2; मन्त्र 6)*

*मन्त्रार्थ—*
[हे परमेश्वर !] तू (ऋषीणाम्) इन्द्रियों का (प्रस्तरः) फैलानेवाला (असि) है, (दैवाय) दिव्य गुणवाले (प्रस्तराय) फैलाने [तुझ] को (नमः) नमस्कार [सत्कार] (अस्तु) होवे।

*व्याख्या -*
मनुष्य उस परमात्मा को सदा धन्यवाद दें कि उसने उन वेदादि शास्त्र पढ़ने, सुनने, विचारने और उपकार करने के लिये अमूल्य श्रवण आदि इन्द्रियाँ दी हैं।

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*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : ३३४/३५० (334/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*अष्टादशऽध्याय : मोक्षसंन्यासयोग*

*अध्याय १८ श्लोक ५२ (18:52)*
*विविक्तसेवी लघ्वाशी यतवाक्कायमानस:।*
*ध्यानयोगपरो नित्यं वैराग्यं समुपाश्रित:।।*

*शब्दार्थ—*
विविक्त-सेवी—एकान्त स्थान में रहते हुए; लघु-आशी—अल्प भोजन करने वाला; यत—वश में करके; वाक्—वाणी; काय—शरीर; मानस:—तथा मन को; ध्यान-योग-पर:—समाधि में लीन; नित्यम्— लगातार,चौबीसों घण्टे; वैराग्यम्—वैराग्य का; समुपाश्रित:—समान रूप से आश्रय लेकर।

*अनुवाद—*
जो वैराग्यके आश्रित, एकान्तका सेवन करनेवाला और नियमित/निश्चित/अल्प भोजन करनेवाला साधक धैर्यपूर्वक इन्द्रियोंका नियमन करके, शरीर-वाणी-मनको वशमें करके, शब्दादि विषयोंका त्याग करके और राग-द्वेषको छोड़कर निरन्तर ध्यानयोगके परायण हो जाता है, वह अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध और परिग्रहका त्याग करके एवं निर्मम तथा शान्त होकर (ब्रह्मप्राप्तिका पात्र हो जाता है।)

*अध्याय १८ श्लोक ५३ (18:53)*
*अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।*
*विमुच्य निर्मम: शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते॥*

*शब्दार्थ—*
अहङ्कारम्— मिथ्या अहंकार को; बलम्—मिथ्या बल को; दर्पम्—मिथ्या घमंड को; कामम्—काम को; क्रोधम्—क्रोध को; परिग्रहम्—तथा भौतिक वस्तुओं के संग्रह को; विमुच्य— त्याग कर; निर्मम:—स्वामित्व की भावना से रहित, ममत्व से रहित; शान्त:—शान्त; ब्रह्म-भूयाय— आत्म-साक्षात्कार के लिए; कल्पते—योग्य हो जाता है।

*अनुवाद—*
अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध और परिग्रह को त्याग कर ममत्वभाव से रहित और शान्त पुरुष ब्रह्म प्राप्ति के योग्य बन जाता है।

शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

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*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेदानुसार गृहस्थों को कैसा प्रयत्न करना चाहिये?*

*वयमु त्वा गृहपते जनानामग्ने अकर्म समिधा बृहन्तम्। अस्थूरि नो गार्हपत्यानि सन्तु तिग्मेन नस्तेजसा सं शिशाधि॥*

*(ऋग्वेद - मण्डल 6; सूक्त 15; मन्त्र 19)*

*मन्त्रार्थ—*
हे (गृहपते) गृहस्थों के पालन करनेवाले (अग्ने) अग्नि के समान वर्त्तमान (वयम्) हम लोग (जनानाम्) मनुष्यों के मध्य में (त्वा) आपका आश्रय करके (समिधा) प्रदीपक साधन से अग्नि को (बृहन्तम्) बड़ा (अकर्म्म) करें (उ) और (नः) हम लोगों का (अस्थूरि) चलनेवाला वाहन और (गार्हपत्यानि) गृहपति से संयुक्त कर्म्म जिस प्रकार से सिद्ध (सन्तु) हों उस प्रकार से (तिग्मेन) तीव्र (तेजसा) तेज से आप (नः) हम लोगों को (सम्, शिशाधि) उत्तम प्रकार शिक्षा दीजिये।

*व्याख्या—*
हे गृहस्थजनों! आप लोग आलस्य का त्याग करके सृष्टिक्रम से विद्या की उन्नति करके सुख को प्राप्त होइए व अन्य विद्यार्थियों को विद्या ग्रहण कराइये, जिससे सब सुख बढ़े।

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*🔲 भगवान परशुराम जन्मोत्सव सनातन धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन भगवान परशुराम जन्मोत्सव मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान परशुराम जगत के पालनहार विष्णुजी के अवतार हैं। वे भले ही ब्राह्मण कुल में जन्मे, लेकिन उनके कर्म क्षत्रियों के समान थे। भगवान परशुराम के जीवन हमें कई अच्छी चीजों की प्रेरणा मिलती है।*

*♦️भगवान परशुराम जन्मोत्सव का महत्व :*
परशुराम जी के जन्मोत्सव का महत्व तो आप इस बात से ही जान गए होंगे कि परशुराम जी भगवान विष्णु के छठे अवतार थे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार परशुराम जी एक मात्र ऐसे अवतार हैं, जो आज भी पृथ्वी पर जीवित हैं। दक्षिण भारत के उडुपी के पास भगवान परशुराम जी का बड़ा मंदिर है। कल्कि पुराण के अनुसार, जब कलयुग में भगवान विष्णु के 10वें अवतार कल्कि अवतरित होंगे, तो परशुराम जी ही उनको अस्त्र-शस्त्र में पारंगत करेंगे।

*🟠माता-पिता का सम्मान :*
भगवान परशुराम ने हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान किया और उन्हें भगवान के समान ही माना। माता-पिता के हर आदेश का पालन भगवान परशुराम ने किया। हमें भी जीवन में हमेशा अपने माता-पिता का सम्मान और उनकी हर आज्ञा का पालन करना चाहिए। जो व्यक्ति माता-पिता का सम्मान करते हैं, भगवान भी उनसे प्रसन्न रहते हैं।

*🟡दान की भावना :*
धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम ने अश्वमेघ यज्ञ कर पूरी दुनिया को जीत लिया था, लेकिन उन्होंने सबकुछ दान कर दिया। हमें भगवान परशुराम से दान करना सीखना चाहिए। अपनी क्षमता के अनुसार दान अवश्य करना चाहिए। धार्मिक मान्यता के अनुसार भी दान करने का बहुत अधिक महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि दान करने से उसका कई गुना फल मिलता है।

*🟠न्याय सर्वोपरि :*
भगवान परशुराम ने न्याय करने के लिए सहस्त्रार्जुन और उसके वंश का नाश कर दिया था। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का मानना था कि न्याय करना बहुत आवश्यक है। इसलिए उन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं में इस बात का वर्णन भी है कि भगवान परशुराम सहस्त्रार्जुन और उसके वंश का नाश नहीं करना चाहते थे, परंतु उन्होंने न्याय के लिए ऐसा किया। भगवान परशुराम के लिए न्याय सबसे ऊपर था। हमें भी जीवन में न्याय करना चाहिए।

*🟡विवेकपूर्ण कार्य :*
भगवान परशुराम ने गुस्से में आकर कभी भी अपना विवेक नहीं खोया। धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान परशुराम का स्वभाव गुस्से वाला था, परंतु उन्होंने हर कार्य को संयम से ही किया। हमें भी जीवन में सदैव विवेक और संयम बना के रखना चाहिए।
🟣_*अक्षय तृतीया* *(आखा तीज) [वैशाख ]*
*का महत्व क्यों है और जानिए इस दिन कि कुछ महत्वपूर्ण जानकारियाँ:*


🕉 ब्रह्माजी के पुत्र *अक्षय कुमार* का अवतरण।
🕉 *माँ अन्नपूर्णा* का जन्म।
🕉 *चिरंजीवी महर्षी परशुराम* का जन्म हुआ था इसीलिए आज *परशुराम जन्मोत्सव* भी हैं।
🕉 *कुबेर* को खजाना मिला था।
🕉 *माँ गंगा* का धरती अवतरण हुआ था।
🕉 सूर्य भगवान ने पांडवों को *अक्षय पात्र* दिया।
🕉 महाभारत का *युद्ध समाप्त* हुआ था।
🕉 वेदव्यास जी ने *महाकाव्य महाभारत की रचना* गणेश जी के साथ शुरू किया था।
🕉 प्रथम तीर्थंकर *आदिनाथ ऋषभदेवजी भगवान* के 13 महीने का कठीन उपवास का *पारणा इक्षु (गन्ने) के रस से किया* था।
🕉 प्रसिद्ध तीर्थ स्थल *श्री बद्री नारायण धाम* का कपाट खोले जाते है।
🕉 बृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में *श्री कृष्ण चरण के दर्शन* होते है।
🕉 जगन्नाथ भगवान के सभी *रथों को बनाना प्रारम्भ* किया जाता है।
🕉 आदि शंकराचार्य ने *कनकधारा स्तोत्र* की रचना की थी।
🕉 *अक्षय* का मतलब है जिसका कभी क्षय (नाश) न हो!!!
🕉 *अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है....!!!*

अक्षय रहे *सुख* आपका,😌
अक्षय रहे *धन* आपका,💰
अक्षय रहे *प्रेम* आपका,💕
अक्षय रहे *स्वास्थ* आपका,💪
अक्षय रहे *संबद्ध* हमारा
अक्षय तृतीया की आपको और आपके सम्पूर्ण परिवार को *हार्दिक शुभकामनाएं*
*🧐‘मेरी फूल जैसी बेटी को छलनी कर दिया’: 10वीं की छात्रा से गैंगरेप, 500 का नोट देकर कहा- जब-जहाँ बुलाएँ चली आना; एक्शन में बुलडोजर*

https://hindi.opindia.com/national/madhya-pradesh-shahdol-minor-student-gangrape-five-accused-arrested-police-bulldozer/

*🔊मध्य प्रदेश के शहडोल से एक नाबालिग लड़की के साथ गैंगरेप का मामला सामने आया है। छात्रा का वीडियो भी बना लिया और उसे धमकाया गया। इस मामले में पुलिस ने पाँच आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया है। छात्रा को आरोपितों ने वीडियो वायरल करने की धमकी भी दी।*
*आत्मबोध🕉️🦁*

*श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय*

*दिवस : ३१/३५० (31/350)*

*।। ॐ श्री परमात्मने नमः ।।*

*द्वितीयऽध्याय : सांख्ययोग*

*अध्याय ०२ : श्लोक १५ (02:15)*
*यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।*
*समदु:खसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते॥*
*शब्दार्थ—*
(हि) क्योंकि (पुरुषर्षभ) हे पुरुषश्रेष्ठ! (समदुःखसुखम्) दुःख-सुखको समान समझनेवाले (यम्) जिस(धीरम्) धीर अर्थात् तत्त्वदर्शी (पुरुषम्) पुरुषको (एते) ये (न व्यथयन्ति) व्याकुल नहीं करते (सः) वह (अमृतत्वाय) पूर्ण परमात्मा के आनन्द के (कल्पते) योग्य होता है।

*अनुवाद—*
क्योंकि हे पुरुषश्रेष्ठ! दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रिय और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य होता है।

*अध्याय ०२ : श्लोक १६ (02:16)*
*नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सत:।*
*उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्वदर्शिभि:॥*

*शब्दार्थ—*
(असतः) असत् वस्तु की तो (भावः) सत्ता (न) नहीं (विद्यते) जानी जाती (तु) और (सतः) सत् का (अभावः) अभाव (न) नहीं (विद्यते) जाना जाता इस प्रकार (अनयोः) इन (उभयोः) दोनों की (अपि) भी (अन्तः) आन्तरिक तत्त्व/गुण, वास्तविकता को (तत्त्वदर्शिभिः) तत्वज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी संतों द्वारा (दृष्टः) देखा गया है।

*अनुवाद—*
असत्‌ वस्तु की तो सत्ता नहीं है और सत्‌ का अभाव नहीं है। इस प्रकार इन दोनों का ही तत्व, तत्वज्ञानी पुरुषों द्वारा देखा गया है।

शेष क्रमश: कल

*अधिकांश हिन्दू तथाकथित व्यस्तता व तथाकथित समयाभाव के कारण हम सभी सनातनियों के लिए आदरणीय पठनीय एवं अनुकरणीय श्रीमद्भगवद्गीता का स्वाध्याय करना छोड़ चुके हैं, इसलिए प्रतिदिन गीता जी के दो श्लोकों को उनके हिन्दी अर्थ सहित भेजकर लगभग एक वर्ष के अन्तराल  (350 दिन × 2 श्लोक/दिन = 700 श्लोक) में एक बार समूह से हजारों हिन्दुओं को सम्पूर्ण गीताजी का स्वाध्याय कराने का प्रण लिया गया है। आप सभी भी ये दो श्लोक प्रतिदिन पढ़ने व पढ़वाने का संकल्प लें।*

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*दैनिक वेद मन्त्र स्वाध्याय : वेद में परमात्मा की उपासना से होने वाले कल्याण का सन्देश*

*अद्य नो देव सवितः प्रजावत्सावीः सौभगम् । परा दुःष्वप्न्यꣳ सुव।।*

*(सामवेद - मंत्र संख्या 141)*

*मन्त्रार्थ—*
हे (देव) ऐश्वर्यप्रदायक, प्रकाशमय, प्रकाशक, सर्वोपरि विराजमान, (सवितः) उत्तम बुद्धि आदि के प्रेरक इन्द्र परमात्मन् ! (अद्य) आज, आप (नः) हमारे लिए (प्रजावत्) सन्ततियुक्त अर्थात् उत्तरोत्तर बढ़नेवाले (सौभगम्) धर्म, यश, श्री, ज्ञान, वैराग्य आदि का धन (सावीः) प्रेरित कीजिए, (दुःष्वप्न्यम्) दिन का दुःस्वप्न, रात्रि का दुःस्वप्न और उनसे होनेवाले कुपरिणामों को (परासुव) दूर कर दीजिए।

*व्याख्या—*
परमात्मा की उपासना से मनुष्य निरन्तर बढ़नेवाले सद्गुणरूप बहुमूल्य धन को और दोषों से मुक्ति को पा लेता है।


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2024/06/26 17:58:58
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